|रचनाकार=ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'
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खज़ाने में तुम्हारे लाखों गम हैं
मगर लगता है हमको फिर भी कम हैं
हमें आता है बचकर भी निकलना
बला से रास्ते में पेचोखम़ हैं
नहीं कोई हमारे साथ, तो क्या
हमारा हौसला है और हम हैं
समझते जो हमें कमजोर उनको
बता दो ये महज़ उनके वहम हैं
न बदलेंगे ज़माने के चलन से
हमारे भी पराग अपने नियम हैं
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