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घास / नरेश सक्सेना

37 bytes added, 07:53, 29 दिसम्बर 2009
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बस्ती वीरानों पर यकसाँ फैल रही है घास
 
उससे पूछा क्यों उदास हो, कुछ तो होगा खास
 
कहाँ गए सब घोड़े, अचरज में डूबी है घास
 
घास ने खाए घोड़े या घोड़ों ने खाई घास
 
सारी दुनिया को था जिनके कब्ज़े का अहसास
 
उनके पते ठिकानों तक पर फैल चुकी है घास
 
धरती पानी की जाई सूरज की खासमखास
 
फिर भी क़दमों तले बिछी कुछ कहती है यह घास
 
धरती भर भूगोल घास का तिनके भर इतिहास
 
घास से पहले, घास यहाँ थी, बाद में होगी घास ।
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