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|संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>उसी ने छला <br> अंध जिस पर भरोसा किया, <br> उसी ने सताया <br> किया सहज निःस्वार्थ जिसका भला ! <br><br>
उसी ने डसा <br> दूध जिसको पिलाया, <br> अनजान बन कर रहा दूर <br> क्या खूब रिश्ता निभाया ! <br><br>
अपरिचित गया बन <br> वही आज <br> जिसको गले से लगाया कभी, <br> अजनबी बन गया <br> प्यार, <br> भर-भर जिसे गोद-झूले झुलाया कभी ! <br><br>
हमसफ़र <br> मुफलिसी में कर गया किनारा, <br> ज़िन्दगी में अकेला रहा <br> और हर बार हारा ! <br><br/poem>
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