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यादों के सहारे / भावना कुँअर

16 bytes removed, 09:06, 29 दिसम्बर 2009
|रचनाकार=भावना कुँअर
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कल जब वो
 
मेरी गोद में आया,
 
बहुत मासूम !
 
बहुत कोमल !
 
इस संग दिल दुनिया से
 
अछूता सा,
 
शान्त!
 
बिल्कुल शान्त !
 
ना कोई धड़कन
 
ना ही कोई हलचल।
 
मेरा सलौना,
 
मेरा नन्हा,
 
बिना धड़कन के मेरी बाहों में।
 
नहीं भूल पाती
 
उसका मासूम चेहरा,
 
नहीं भूल पाती
 
उसका स्पर्श।
 
बस जी रहीं हूँ
 
उसकी यादों के सहारे।
 
देखती हूँ
 
हर रात उसका चेहरा
 
टिमटिमाते तारों के बीच
 
और जब भी कोई तारा
 
ज्यादा प्रकाशमान होता है,
 
लगता है मेरा नन्हा
 
लौट आया है
 
तारा बनकर
 
और कहता है-
 
"मत रो माँ मैं यहीं हूँ
 
तुम्हारे सामने
 
मैं रोज़ देखा करता हूँ तुम्हें
 
यूँ ही रोते हुये
 
मेरा दिल दुखता है माँ
 
तुम्हें यूँ देखकर
 
मैं तो आना चाहता था,
 
किन्तु नहीं आने दिया
 
एक डॉक्टर की लापरवाही ने मुझे
 
मिटा ही डाला मेरा वज़ूद
 
इस दुनिया से,
 
पर माँ तुम चिन्ता मत करो
 
मैं यहाँ खुश हूँ
 
क्योंकि मैं मिलता हूँ रोज़ ही तुमसे
 
तुम भी देखा करो मुझे वहाँ से।
 
नहीं छीन पायेगी ये दुनिया
 
अब कभी भी
 
ये मिलन हमारा…..
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