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<poem>
राज अपने तुमको बताती गयी
नजदीक दिल के यूँ आती गयी ।
हर दम रहता तेरा ही ख्याल
यूँ ख्वाब तेरे सजाती गयी ।
बंदिश तो न थी तेरे प्यार में
बन्धन में कैसे समाती गयी ?
मंजिल को पाने की ही चाह में
कदमों को अपने बढ़ाती गयी ।
तुम जो मिले ज़िदंगी में प्रिये
दुनिया मैं अपनी बसाती गयी ।
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