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जीवन / संतरण / महेन्द्र भटनागर

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|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा<br>जो खिल रहा है आज,<br>:कल झर जायगा !<br><br>
इसलिए,<br> हर पल विरल<br>परिपूर्ण हो रस-रंग से,<br>मधु-प्यार से !<br>डोलता अविरल रहे हर उर<br>उमंगों के उमड़ते ज्वार से !<br><br>
एक दिन, आख़िर,<br>चमकती हर किरण बुझ जायगी... <br> और<br>चारों ओर<br>बस, गहरा अँधेरा छायगा !<br>जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा<br>जो खिल रहा है आज,<br>कल झर जाएगा !<br><br>
मत लगाओ द्वार अधरों के<br>दमकती दूधिया मुसकान पर,<br>हो नहीं प्रतिबंध कोई<br>प्राण-वीणा पर थिरकते<br>ज़िन्दगी के गान पर !<br><br>
एक दिन<br>उड़ जायगा सब ; <br> फिर न वापस आयगा !<br>जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा<br>जो खिल रह है आज,<br>कल झर जायगा !<br/poem>
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