|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर
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अँधेरा दो{{KKCatKavita}}<brpoem>अँधेरा दो पराजय का अँधेरा दो<br>निराशा का सघन-गहरा अँधेरा दो<br>पर, विजय की आस मत छीनो<br>सुबह की साँस मत छीनो,<br>नये संसार के<br>सुख-साध्य सपनों के सहारे<br>करुण जीवन बिता लेंगे !<br>अभावों से भरा जीवन बिता लेंगे !<br><br>
वंचना दो<br>प्रीत के हर प्रिय चरण पर वंचना दो<br>मृग-तृषा-सी वंचना दो<br>पर, अधर के गीत मत छीनो<br>राग का संगीत मत छीनो,<br>सुधा-धर कंठ से<br>उर भावना-विश्वास धरती पर<br>कल्पनाओं के सहारे<br>विरस यौवन बिता लेंगे,<br>हर सजल सावन बिता लेंगे !<br>अकेला अनमना यौवन बिता लेंगे !<br/poem>