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|संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर
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{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>आज तक मैंने तुम्हारी<br>चाहना का गीत गाया,<br>और रह-रह कर तड़पती<br>याद में जीवन बिताया,<br>:क्या प्रतीक्षा में सदा ही<br>:मैं व्यथा सहता रहूंगा ? <BR><br>
स्वप्न में देखा कभी यदि,<br>कह उठा, ‘बस आज आये’ !<br>दिवस बीता, रात बीती<br>पर, न सुख के मेघ छाये,<br>:कल्पना में ही सदा क्या<br>:मैं विकल बहता रहूंगा ? <BR><br>
प्राण उन्मन, भग्न जीवन,<br>मूक मेरी आज वाणी,<br>याद आती है विगत युग<br>की वही मीठी कहानी,<br>:क्या अभावों की कथा ही<br>:मैं सदा कहता रहूंगा ? <BR/poem>
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