|संग्रह=राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>लोग हैं _<br>ऐसी हताशा में<br>व्यग्र हो<br>कर बैठते हैं<br>आत्म-हत्या! <br> या<br>खो बैठते हैं संतुलन<br>तन का / मन का! <br> व हो विक्षिप्त<br>रोते हैं - अकारण! <br> हँसते हैं - अकारण! <br> किन्तु तुम हो<br>स्थिर / स्व-सीमित / मौन / जीवित / संतुलित<br>अभी तक! <br> वस्तुत: <br> जिसने जी लिया संन्यास<br>मरना और जीना<br>एक है उसके लिए! <br> विष हो या अमृत<br>पीना<br>एक है उसके लिए! <br/poem>