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|संग्रह=राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}ऊहापोह<brpoem>ऊहापोह (जितना भी) <br> ज़रूरी है।<br>विचार-विमर्श<br>हो परिपक्व जितने भी समय में।<br>तत्त्व-निर्णय के लिए<br>अनिवार्य<br>मीमांसा-समीक्षा / तर्क / विशद विवेचना<br>प्रत्येक वांछित कोण से।<br>क्योंकि जीवन में<br>हुआ जो भी घटित -<br>वह स्थिर सदा को, <br> एक भी अवसर नहीं उपलब्ध<br>भूल-सुधार को।<br>सम्भव नहीं<br>किंचित बदलना <br> कृत-क्रिया को।<br>सत्य _<br>कर्ता और निर्णायक <br> तुम्हीं हो, <br> पर नियामक तुम नहीं।<br>निर्लिप्त हो<br>परिणाम या फल से।<br>(विवशता) <br> सिध्द है _<br>जीवन : परीक्षा है कठिन<br>पल-पल परीक्षा है कठिन।<br>वीक्षा करो<br>हर साँस गिन-गिन, <br> जो समक्ष <br> उसे करो स्वीकार <br>
अंगीकार!
</poem>
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