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|संग्रह=माया दर्पण / श्रीकांत वर्मा
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एक मारवाड़ी मुनीम जमुहाई लेता हुआ
 
कुंजी का गुच्छा खोंसे
 
अपनी टेंट में
 
चलता चला चलता है दुकान की ओर
 
बही खोल लिखता है
 श्री गणेशाय नमः, शुभ-लाभ । लाभ।
जमुहाई लेकर फिर एक बार जोरसे
 
कहता है-
 ऊँ नमः शिवाय ! 
पटरी पर खड़ी एक गाय
 
रँभाती है
 
गली से एक स्त्री
 
हाथ में झा़डू
 
सिर पर टोकरा लिये
 आती है । है।
 
सड़क पर धूल, आँख में कीचड़
 
पेड़ पर धूप
 
धोती पर दाग
 
चौके में धुआँ
 
अचानक हर घर में
 
सुबह
 फट पड़ती है । है।
एक बिल्ली मुँडेर पर
 
बैठी हुई
 
दूसरी बिल्ली से
 
झगड़ती है
 
 दुकानें खुलती हैं ।हैं।</poem>
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