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दुनिया - २ / केशव
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|संग्रह=ओ पवित्र नदी / केशव
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<poem>
तुमसे जुड़कर मैं
जो तेज़ से तेज़ हथियार के सामने भी
खड़ा रहता है
::
निडर
जिसकी अदृष्य उंगली थामकर
अँधेरे के घने वृक्ष में
खुद को
सबसे बाँट लेता हूँ
</poem>
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