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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह=अनुभूत क्षण / महेन्द्र भटनागर
}}{{KKCatKavita}}<poem>सँभलते - सँभलते... <br> समय तीव्र गति से गुज़रता गया ! <br> सब व्यवस्थित बिखरता गया ! <br> हस्तगत था अरे जो<br>अचानक फिसलता गया .... <br> हर क़दम पर<br>सँभलते-सँभलते ! <br><br>
हर तार टूटा<br>सँवरते-सँवरते<br>कि फिरफ़िर उलझता गया ! <br> बंध हर और कसता गया ; <br> सूत्र क्रमश: सुलझते-सुलझते<br>उलझता गया, <br> हर क़दम पर<br>सँवरते-सँवरते ! <br><br>
ज़िन्दगी कट गयी ज़िन्दगी<br>सीखते-सीखते, <br> खो गये कंठ-स्वर<br>चीखते-चीखते, <br> शास्त्र संगीत का<br>सीखते-सीखते ! <br/poem>
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