|संग्रह=नई चेतना / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बढ़ो विश्वास ले, अवरोध पथ का दूर होएगा !
तुम्हारी ज़िन्दगी की आग बन अंगार चमकेगी,
अंधेरी सब दिशाएँ रोशनी में डूब दमकेंगी,
तुम्हारे दुश्मनों का गर्व चकनाचूर होएगा !
सतत गाते रहो वह गीत जिसमें हो भरी आशा,
बताए लक्ष्य की दृढ़ता तुम्हारी आँख की भाषा,
विरोधी हार कर फिर तो, तुम्हारे पैर धोएगा !
मुसीबत की शिलाएँ सब चटककर टूट जाएँगी,
गरजती आँधियाँ दुख की विनत हो धूल खाएँगी,
तुम्हारे प्रेरणा-जल से मनुज सुख-बीज बोएगा!
तुम्हारे प्रेरणा-जल से मनुज सुख-बीज बोएगा !'''रचनाकाल: 1951 1951</poem>