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आशा / रामधारी सिंह "दिनकर"
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10:54, 2 जनवरी 2010
सारी आशाएँ न पूर्ण यदि होती हों,
तब भी अंचल छोड़ नहीं आशाओं के।
::(२)
मर गया होता कभी का
::"घूँट यह पी लो कि संकट जा रहा है।
::आज से अच्छा दिवस कल आ रहा है"।
::(३)
सभी दुखों की एक महौषधि धीरज है,
सभी आपदाओं की एक तरी आशा।
</poem>
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