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शोक / जय गोस्वामी
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15:05, 2 जनवरी 2010
आज, अगर छीनकर नहीं ला सकते,
::::मरघट हुए गाँव !
अगर इकट्ठा न कर
प्पो
पाओ
, तमाम सूखे हुए आँसू !
अगर... अगर...
चिनगारी बनकर फट न पड़ें
अनिल जनविजय
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