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|रचनाकार=जय गोस्वामी
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<Poem>
जब-जब मैंने उठाई है कलमक़लम
प्यार के बोल लिखने के लिए,
मेरे काग़ज़ के पन्नों पर आकर लेट जाती है,
उसे बीचोंबीच से चीरते हुए,
बहती रहती है नहर !
चांदनी चाँदनी में खड़ी रहती है साइकिल-वैनचांदनी चाँदनी में खड़ा रहता है,
सिर पर कफ़न ओढ़े-- वैन चालक