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{{KKRachna
|रचनाकार=अश्वघोष
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष
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{{KKCatGhazal}}
अब परिंदों को मेरा घर घोंसला जैसा लगे
घंटियों की भाँति जब बजने लगें ख़ोमोशियाँख़मोशियाँ
घंटियों का शोर क्यों न जलजला जैसा लगे।
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