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सिलसिला ये दोस्ती का / अश्वघोष
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06:02, 3 जनवरी 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=अश्वघोष
|संग्रह=
जेबों में डर / अश्वघोष
}}
{{KKCatGhazal}}
अब परिंदों को मेरा घर घोंसला जैसा लगे
घंटियों की भाँति जब बजने लगें
ख़ोमोशियाँ
ख़मोशियाँ
घंटियों का शोर क्यों न जलजला जैसा लगे।
Shrddha
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