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ज़माना आ गया / बलबीर सिंह 'रंग'
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17:19, 24 दिसम्बर 2006
किसी को देखते ही आपका आभास होता है,
निगाहें आ
गई
गईं
परछाइयों तक तुम नहीं आये ।
न
शमादा हैं
शम्म'अ है
न परवाने
हैं
ये क्या 'रंग' है महफ़िल,
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आये ।
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घनश्याम चन्द्र गुप्त