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{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
<poem>
सुबह सुबह
सूरज के पास
बैठी है जिंदगी उदास
जाने क्यों?
जीवन के
सागर में
तैर रहे मछली-से दिन
मछुए की
बंसी के काँटे-सा
अनजानी संध्या का छिन
अंबर के कागज के पास
बैठी हैं स्याहियाँ उदास
जाने क्यों ?
</poem>