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{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
|संग्रह=डॉ० कुंवर बैचेन के नवगीत / कुँअर बेचैन
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<poem>
नित आवारा धूप घोंपती
पथ में किरण-छुरे।
आज के
दिन हैं बहुत बुरे ।
जो चाही
गाली फूलों को
कांटों ने बक दी
पगडंडी के
अधरों पर फिर
गर्म रेत रख दी
चारों ओर
तपन के निर्मम
सौ-सौ जाल पुरे।
आज के दिन हैं बहुत बुरे ।
सूखी हुई
झुकी शाखों पर
कोलाहल लटका
क्रुद्ध छाँव को
इधर-उधर
खो जाने का खटका
गाते हैं
अश्लील गीत अब
पावन तानपुरे।
आज के दिन हैं बहुत बुरे ।
</poem>