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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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[[Category:पद]]
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मोर के पखौवनि को मुकुट छबीलौ छोरि,
क्रीट मनि-मंडित घराइ करिहैं कहा ।
कहै रतनाकर त्यौं माखन सनेही बिनु,
षट रस व्यंजन चबाइ करिहैं कहा ॥
गोपी ग्वाल बालनि कौं झोंकि बिरहानल मैं,
हरि सुर बृंद की बलाइ करिहैं कहा ।
प्यारौ नाम गोबिंद गुपाल कौ बिहाइ हाय,
ठाकुर त्रिलोक के कहाइ करिहैं कहा ॥9॥
</poem>
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