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वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै / घनानंद
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|रचनाकार=घनानंद
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poem
>वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै
लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।
वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,
आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की,
सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।।
</
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poem
>
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