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दुख-सुख ग्रीषम और सिसिर न ब्यापै जिन्हें / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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दुख-सुख ग्रीषम और सिसिर न ब्यापै जिन्हें,
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