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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाये है मुझ से / ग़ालिब
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16:44, 25 दिसम्बर 2006
कि जितना खेंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे <br><br>
वो बदख़ू और मेरी दास्तन-ए-इश्क़
तूलानीइ
तूलानी
<br>
इबारत मुख़्तसर, क़ासिद भी घबरा जाये है मुझसे <br><br>
Lalit Kumar
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