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|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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गोकुल की गैल-गैल गोप ग्वालिन कौ,
::गोरस के काज लाज-बस कै बहाइबौ ।
कहैं रतनाकर रिझाइबो नवेलिनि कौं,
::गाइबौ गवाइबौ औ नाचिबौ नचाइबौ ॥
कीबौं स्रमहार मनुहार कै बिबिध विधि,
::मोहिनी मृदुल मंजु बाँसुरी बजाइबौ ।
ऊधौ सुख-संपति-समाज ब्रज-मंडल के,
::भूलैं हूँ न भूलै, भूलैं हमकौं भुलाइबौ ॥8॥
</poem>