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16:16, 16 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=उमाशंकर तिवारी
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<poem>
मुझे छूकर ज़रा देखो-
तुम्हारा आईना हूँ मैं।
मुझे भी चोट लगती है
कि शीशे का बना हूँ मैं।
:::तुम्हारी निस्ब्तों के साथ
:::मेरा दिल बहलता है
:::कभी सन्दल महकता है
:::कभी लावा पिघलता है
चुनौती हूँ, कोई मुठभेड़ हूँ
:::या सामना हूँ मैं।
:::तुम्हारे रंग के छींटे
:::मेरा मौसम बदलते हैं
:::लचीली डालियों पर
:::मोगरे के फूल खिलते हैं
पहाडी़ मन्दिरों का जादुई संगीत हूँ
:::आराधना हूँ मैं।
:::कभी जो जख़्म से
:::मजलूम का चेहरा उभरता है
:::हमारी सोच का ख़ुशरंग
:::शीराज़ा बिखरता है
कटाए हाथ बायाँ
औ’ अँगूठा दाहिना हूँ मैं
</poem>