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05:14, 17 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चेहरा वह नहीं था
हँसी भी नहीं थी वह
सुन्दर-सुन्दर था फिर भी सब कुछ
दुःख का ऐसा रूपांतरण
देखा नहीं गया कहीं।
देखा नहीं गया कभी।।
रचनाकाल : 1992, अयोध्या
</poem>