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05:43, 17 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
अपने पिता की तरह कैसे कर सकता हूँ प्यार मैं?
अपने भाई की तरह कैसे?
कैसे कर सकता हूँ प्यार अपने पुत्र की तरह?
मित्र की तरह कैसे?
कैसे किसी ऐसे व्यक्ति की तरह जो नहीं हूँ मैं?
स्त्रियों से किया गया प्यार
वासना की ओर ले गया मुझे हमेशा
वनस्पतियों से किया गया प्यार
उच्चाटन की ओर।
पक्षियों से जब-जब किया है प्यार मैंने
चुप्पी का शिकार हो गया हूँ अक्सर
फूलों के बीच लगभग अन्हरा गई हैं मेरी आँखें
पशुओं से मिलकर सतर्क हो गया हूँ ज़रुरत से ज़्यादा
कहाँ कर सका हूँ प्यार में औरों की तरह किताबों से।
किताबें
बैचेनी के दौरान
पीठ पर रखी आत्मीय हथेली की तरह लगीं है मुझे
दूसरे दे आते हैं परचून की दुकान पर बेधड़क
औरों की तरह नहीं कर सका हूँ प्यार मैं कभी।
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा
</poem>