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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
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<poem>
स्त्री के
दुख की जड़े
धँसी होती हैं
इतने गहरे

कि छिपाए रख सकती है
सबसे
उम्र-भर...।
</poem>