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18:38, 23 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
रिक्तता भरने के लिए
तुमने चुनी स्त्री
और भयभीत हो गए
तुमने बनाए
चिकें... किवाड़... परदे
फिर भी तुम्हारा डर नहीं गया
तुमने ईजाद किए
तीज-व्रत, पूजा - पाठ
नाना आडम्बर
मगर डर नहीं गया
तुमने तब्दील कर दिया उसे
गूँगी मशीन में
लेकिन सन्देह नहीं गया
जब भी देखते हो तुम
खुली खिड़की या झ्ररोखा
लगवा देते हो नई चिकें
नए किवाड़-नए पर्दे
ताकि आज़ादी की हवा में
खुद को पहचान न ले स्त्री।
</poem>