916 bytes added,
18:45, 23 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं
पढा़ई पूरी करने के बाद सोऊँगी
सोऊँगी ज़रूर नौकरी मिलने के बाद
पहले विवाह करके घर तो बसा लूँ
भेज तो लूँ बच्चे को स्कूल
पढा़-लिखाकर बना तो दूँ
उसे अफसर
विवाह ही कर दूँ उसका
फिर पोते के साथ खूब सोऊँगी
यही सोचते-सोचते गुज़र गई
तमाम उम्र...
और अब नींद नहीं आती।
</poem>