1,951 bytes added,
06:09, 26 जनवरी 2010 '''कालातीत कवि'''
कालातीत कवि अपने जीते जी कालातीत हो जाते हैं. एक सुबह वे<br>
यह देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि वे काफी बड़े हो गये हैं. कई<br>
बार उन्हें अपने से तिगुना-चौगुना होते हुए देखा गया है. उनके<br>
पाजामे अकसर छोटे पड़ जाते हैं. अपनी चप्पलें वे छोटे कवियों को<br>
दे देते हैं.
कुछ कवि रात में कालातीत होते हैं. लोग जब सिकुड़े-सिमटे गठरी<br>
बने नींद में दुबके रहते हैं कवियों का कद बढ़ता रहता है. कभी वे<br>
इतने बढ़े हो उठते हैं कि वे भी अपने को देख नहीं पाते. कुछ कवि<br>
अपने बचपन में ही बुजुर्ग हो गये. युवा होते-होते उन्हें कालजयी कहा<br>
जाने लगा. कुछ ने अपने नाम मृतकों की सूची में लिखवा लिये. कुछ<br>
दूसरी भाषाओं में पा गये ईनाम.
कुछ कवि अपने बचपन के फोटो छ्पवाते हैं. बाकी अपने बच्चों के<br>
फोटो छ्पवाकर काम चलाते हैं कि हम तो रहे विफल. अब बच्चों<br>
से ही है उम्मीद.
१९८८