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पुरानी यादें-3 / मनीषा पांडेय
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15:18, 26 जनवरी 2010
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|रचनाकार=मनीषा पांडेय
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<poem>
पुराना घाव बनकर यादें
रिसती रहती हैं दिन-रात
हलक में अटकी पड़ी रहती हैं सालों-साल
न उगली जाती हैं, न निगली
</poem>
अनिल जनविजय
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