Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनीषा पांडेय|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
पुराना घाव बनकर यादें
 
रिसती रहती हैं दिन-रात
 
हलक में अटकी पड़ी रहती हैं सालों-साल
 
न उगली जाती हैं, न निगली
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits