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आइने / मंगलेश डबराल

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'''आईने'''

आईनों के बारे में अनंत लिखा जाता रहा है लेकिन यह तय है कि<br>
आईना ईजाद करनेवाला मानवीय दुर्बलताओं का कोई विद्वान रहा<br>
होगा. आईने के सामने आदमी वे हरकतें करता है जो हर हाल में<br>
असामान्य कही जायेंगी. वह घूर-घूर कर देखता है नथुने फुलाता है<br>
दाँत दिखाता है और भौंहें टेढ़ी करके देखता है कि इस तरह वह कितना<br>
सुंदर दिखता है. ये चीजें बंदरों से हमारा रिश्ता प्रमाणित करती हैं<br>
हालाकि आईने से बंदरों के लगाव के बारे में कोई ठोस सबूत उपलब्ध<br>
नहीं हैं.

कुछ लोग अपने चेहरे इस तरह बनाये रहते हैं जैसे वे आईना देख<br>
रहे हों. वे किसी चेहरे को नहीं पहचानते. ऎसे लोग समाज में काफ़ी<br>
ताकतवर माने जाते हैं. वे हर चेहरे को आईने की तरह निहारते हैं<br>
और अपनी सुन्दरता पर धीमे-धीमे मुस्कराते रहते हैं जबकि सचाई<br>
यह है कि वे सिर्फ़ नथुने फुलाते हैं दाँत किटकिटाते हैं भौंहें तानते<br>
हैं और घूरते रहते हैं.

१९९१
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