Changes

:तुमसे जन के लिए यत्न से, उसको रक्षित रक्खूँगा।"
हँसी सुन्दरी भी, फिर बोली-"यदि वह फल मैं ही होऊँ,
:तो क्या करो, बताओ? बस अब, क्यों अमूल्य अवसर होऊँखोऊँ?"
"तो मैं योग्य पात्र खोजूँगा, सहज परन्तु नहीं यह काम,"
:"मैंने खोज लिया है उसको, यद्यपि नहीं जानती नाम।
फिर भी वह मेरे समक्ष है", चौंके लक्ष्मण, बोले --"कौन?":केवल "केवल तुम" कहकर रमणी भी, हुई तनिक लज्जित हो मौन॥
"पाप शान्त हो, पाप शान्त हो, कि मैं विवाहित हूँ बाले!"
:"पर क्या पुरुष नहीं होते हैं, दो-दो दाराओं वाले?
नर कृत शास्त्रों के सब बन्धन, हैं नारी को ही लेकर,
:अपने लिए सभी सुविधाएँ, पहले ही कर बैठे नर!"
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits