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"ओ विशाल तरु!<br>
शत सहस्त्र सहस्र पल्लवन-पतझरों ने जिसका नित रूप सँवारा,<br>
कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,<br>
दिन भौंरे कर गये गुंजरित,<br>
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