Changes

:मैं पुरुषार्थ पक्षपाती हूँ; इसको सभी जानते हैं।"
यह कहकर लक्ष्मण मुसकाये, रामचन्द्र भी मुसकाये,
:सीता मुसकाईं विनोद के, पुनः प्रमोद भाव छाये।
"रहो, रहो पुरुषार्थ यही है,-पत्नी तक न साथ लाये;"
:कहते कहते वैदेही के, नेत्र प्रेम से भर आये॥
"चलो नदी को घड़े उठा लो, करो और पुरुषार्थ क्षमा,
:मैं मछलियाँ चुगाने को कुछ, ले चलती हूँ धान, समा।
घड़े उठाकर खड़े हो गये, तत्क्षण लक्ष्मण गद्गद-से,
:बोल उठे मानो प्रमत्त हो, राघव महा मोद-मद से-
 
"तनिक देर ठहरो मैं देखूँ, तुम देवर-भाभी की ओर,
:शीतल करूँ हृदय यह अपना, पाकर दुर्लभ हर्ष-हिलोर!"
यह कहकर प्रभु ने दोनों पर, पुलकित होकर सुध-बुध भूल,
:उन दोनों के ही पौधों के, बरसाये नव विकसित फूल॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits