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20:18, 30 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राहत इन्दौरी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>बीमार को मरज़ की दावा देनी चाहिए , मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाजेगा इश्क में, है जितनी पूंजी पास लगा देनी चाहिए
ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं, ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब, मैं आग हूँ तो आग बुछा देनी चाहिए
मैं ख्वाब हूँ तो ख्वाब से चौकाईये मुझे, मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद हो बंद, मैं शब् हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजाये लोग , मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
सच बात कोंन है जो सरे आम कह सके, मैं कह रहा हूँ मैं, मुझको सजा देनी चाहिए
सौदा यही पे होता है हिन्दुस्तान का, संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए
</poem>