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लौट आ रे / कुँअर बेचैन

1,183 bytes added, 07:43, 29 दिसम्बर 2006
लेखक: [[कुँअर बेचैन]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:कुँअर बेचैन]]

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लौट आ रे !

ओ प्रवासी जल !

फिर से लौट आ !


रह गया है प्रण मन में

रेत, केवल रेत जलता

खो गई है हर लहर की

मौन लहराती तरलता

कह रहा है चीख कर मरुथल

फिर से लौट आ रे!


लौट आ रे !

ओ प्रवासी जल !

फिर से लौट आ !


सिंधु सूखे, नदी सूखी

झील सूखी, ताल सूखे

नाव, ये पतवार सूखे

पाल सूखे, जाल सूखे

सूख्सने अब लग गए उत्पल,

फिर से लौट आ रे !


लौट आ रे !

ओ प्रवासी जल !

फिर से लौट आ !



-- यह कविता [[deepak]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>
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