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याद का इक दिया सा जलता है। / अमित
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,
16:36, 1 फ़रवरी 2010
सरनिगूँ<ref>सर झुका हुआ</ref> देख कर तुझे ऐ दोस्त,
मुझको अपना वजूद
<ref>अस्तित्त्व</ref>
खलता है।
मौत के मुस्तकिल<ref>सतत</ref> तकाजों में,
नासमझ देख करके खिलता है।
हमनें इस तरह निभाये
रिस्ते
रिश्ते
,
जैसे कपडे़ कोई बदलता है।
Amitabh
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