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असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 4
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08:31, 16 मई 2007
स्पर्शहीन झरती है --<br>
मानो नभ में तरल नयन ठिठकी<br>
निं
नि
:संख्य सवत्सा युवती माताओं के आशिर्वाद --<br>
उस सन्धि-निमिष की पुलकन लीयमान।<br><br>
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Hemendrakumarrai