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|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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हुआ सवेरा
ज़मीन पर फिर अदब से आकाश
अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...
हुआ सवेरा<br>नदी में स्नान करके सूरजज़मीन पर फिर अदब से आकाश<br>सुनहरी मलमल की पगड़ी बाँधे अपने सर को झुका सड़क किनारे खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है<br>कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...<br><br>
नदी हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में अस्नान करके सूरज<br>सुनहरी मलमल दुआओ के गीत गा रही हैंमहकते फूलों की पगड़ी बाँधे <br>लोरियाँसड़क किनारे <br>सोते रास्ते को जगा रही हैंघनेरा पीपल,खड़ा हुआ मुस्कुरा गली के कोने से हाथ अपने हिला रहा है<br>कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...<br><br>!फ़रिश्ते निकले हैं रौशनी केहरेक रस्ता चमक रहा हैये वक़्त वो हैज़मीं का हर ज़र्रा माँ के दिल-सा धड़क रहा है
हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में<br>दुआओ के गीत गा रही हैं<br>महकते फूलों की लोरियाँ<br>सोते रास्तें को जगा रही हैं<br>घनेरा पीपल,<br>गली के कोने से हाथ अपने हिला रहा है<br>कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं...!<br>फ़रिश्ते निकले हैं रौशनी के<br>हरेक रस्ता चमक रहा है<br>ये वक़्त वो है<br>ज़मीं का हर ज़र्रा <br>माँ के दिल-सा धड़क रहा है<br><br> पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा<br>कबूतरों को उड़ा रहा है<br>कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं<br>
बच्चे स्कूल जा रहा हैं...!
</poem>
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