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इस क्षण / ओम प्रभाकर
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20:01, 3 फ़रवरी 2010
:याद तुम्हारी,
:अपना बोध।
:कहीं अतल
मेम
में
जा डूबे हैं
:सारे शोध।
जमकर पत्थर है हर पल।
</poem>
अनिल जनविजय
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