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13:06, 4 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
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<poem>
हम फकीरों की गली में झांकिए !
सच-बयानी को बुरा मत मानिए !!
फक्र है खुद की जवानी पर यदि -
तो बुढापे का भरम भी जानिए !!
जर्फ़ हो तो सर झुकाने की जगह -
सर झुके जितना झुकाना चाहिए !!
सुर्ख़ियों में आज तो मदहोश हो -
होश आएंगे मिलेंगे जब हाशिये !!
आपकी हर बात अच्छी है मियाँ -
पर मेरे कश्मीर को मत मांगिए !!
बक्त कहता है यही अब ए " प्रभात"
आस्तीं में सांप मत अब पालिए !!
<poem>