Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> दो- तिहाई विश्व की …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
}}
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -

माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।


बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -

पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।



सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई -

कविरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी ।



फ्रेंच,इंग्लिस और जर्मन है भले परवान पर -

आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।



चांद भी है , चांदनी भी , गोधुली- प्रभात भी -

हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।
<poem>