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04:51, 5 फ़रवरी 2010 '''एक यात्रा के बाद'''
एक बार लौटा फिर<br />
घर के दरवाज़े पर-<br />
की ’ठक,ठक’<br />
सुन पड़ी पीछे छूटी हुई नदियों<br />
की लय!
’ठक,ठक’<br />
दीख पड़े पीछे खड़े बहुत दूर<br />
पहाड़!<br />
रास्ते घुमावदार.<br />
चाय की दुकानें<br />
चट्टानें. खेत. चिड़ियाँ.<br />
सुरंगें.
’ठक,ठक<br />
खुला दरवाज़ा.
बच्चे थे घर पर<br />
भड़भड़ाकर मेरे साथ<br />
घुसने की कोशिश<br />
करने लगीं नदियाँ<br />
धँसना चाहने लगे<br />
घर में पहाड़!