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जब कभी भी स्वतंत्रता दिवस आता है, तो मुझेयाद आता है बरबस वह दिन, जब मैंने पढ़ाई पूरी की
और समझा जीवन की उपयोगिता
तो सोचा कि अब जीतनी ही होगी कोई ना कोई प्रतियोगिता
मैंने तैयारी की कई दिनों तक जगकर पूरी-पूरी रात
और सकुचाया-घबराया आया प्रतियोगिता-प्राँगण में सवेरे-सवेरे
तो देखा कि क़तरबढ़ कतारबद्ध थे युवक बहुतेरे
मैं डरा-सहमा-सकुचाया
द्वारपाल के पास आया
और प्रश्न कि की घड़ी घुमाई
मेरा नंबर कब आयगा भाई?
उसने पलटकार कहा- मित्र,
वैसे तो यह प्रतियोगिता शाम तक जाएगी
मगर पच्चास पचास का नोट चलेगा और तेरी बारी आ जाएगी।
यह सुनकर-
मेरा मन मुस्कुराया
मैंने जेब से पच्चास पचास के नोट निकाले
और उसके चेहरे पर घुमाया
तब कहीं जाकर काफ़ी मशक्कत के बाद मेरा नंबर आया
भाईसाहब, जब इस दुनिया में कोई भी सच्चा नहीं है
तो रिश्वत न देकर-
पिछले दरवाज़े से ना पहुँचना भी तो अच्छा नही है
ख़ैर छोड़िए इन बातों को
बातें ज़रूर है विचित्र , किन्तु सुनिए -
मेरे मित्र, कि जब मेरे इंटरव्यू की बारी आईआयी तो मैंने अपने सामने एक मराठी शिक्षिका पाईपायी
उसने कहा-
चलो शुरुआत करते हैं गणपति गणेश से
वह शिक्षिका भौंचक मुझे देखती रही
चिंतन के सागर में डूबती रही, ख़ामोश बस मुझे एकटाक एकटक घूरती रहीमुझे उस दिन कुछ भी नही भयाभाया
और मैं बिना अनुमति के प्रतियोगिता-प्रांगण से बाहर आया