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12:31, 5 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
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पुलिस फिरौती मांगे मितवा,
शहर घिनौना लागे मितवा !
सुते पहरुआ , चोर -उचक्का -
रात -रात भर जागे मितवा !
गणिका बांचे काम , पतुरिया -
पीछे -पीछे भागे मितवा !
दुर्जन मदिरा पान में पीछे -
संत -मौलवी आगे मितवा !
कहे "प्रभात" सुनो भाई जनता -
भूखे लोग अभागे मितवा !
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