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उसके अपने कभी अपने नही हुए

अधूरे सपनों को गले लगाकर

बैठा यह मोहन ठकुरी

गमले के कैकटस जैसा

न फूल सकता है, न फैल सकता है!

उसकी हँसी कृत्रिम है

अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर

बैठा यह मोहन ठकुरी

किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता

किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !

(अनुवाद : स्वयं )